
इनुई सोलर टेलीस्कोप ने रचा इतिहास
8 अगस्त 2024 को, दुनिया के सबसे ताकतवर सोलर टेलीस्कोप — इनुई सोलर टेलीस्कोप — ने पहली बार एक X1.3-क्लास सोलर फ्लेयर की बारीक और शानदार तस्वीर दर्ज की। यह विस्फोट सूर्य की सतह पर फैले चार पृथ्वियों के बराबर क्षेत्र में फैला था। खास बात यह रही कि वैज्ञानिकों ने इस फ्लेयर में अब तक की सबसे पतली कोरोनल लूप्स देखीं, जिनमें से कुछ की मोटाई महज 21 किलोमीटर थी।
कोरोनल लूप्स का महत्व
कोरोनल लूप्स — प्लाज़्मा से बनी संरचनाएँ — सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र द्वारा आकार ग्रहण करती हैं और अक्सर सोलर फ्लेयर से पहले दिखाई देती हैं। फ्लेयर तब उत्पन्न होता है जब चुंबकीय क्षेत्र में अचानक मोड़, टूटन और पुनः संयोजन होता है। अभी तक के उपकरण इन लूप्स को एक साथ समूह के रूप में ही देख पाते थे। लेकिन इनुई टेलीस्कोप ने पहली बार व्यक्तिगत और सूक्ष्म लूप्स को स्पष्ट रूप से दिखाया है।
पृथ्वी पर प्रभाव और विज्ञान के लिए इसका अर्थ
सोलर फ्लेयर पृथ्वी की रेडियो संचार प्रणाली को घंटों तक बाधित कर सकता है। ऐसे में इनकी गहराई से समझ वैज्ञानिकों को अधिक सटीक पूर्वानुमान लगाने में मदद कर सकती है। कोल टैंबुरी, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बोल्डर के खगोलशास्त्री, का कहना है कि इनुई की मदद से अब शोधकर्ता उन सूक्ष्म पैमानों पर अध्ययन कर पा रहे हैं, जहाँ मैग्नेटिक रीकनेक्शन होता है — यानि जहाँ ऊर्जा का विस्फोटक मुक्त होना शुरू होता है।
ब्रह्मांड का प्राचीनतम ब्लैक होल: 13.3 अरब साल पुराना रहस्य
जहाँ एक ओर सूर्य से जुड़ी खोज हुई, वहीं जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) ने इतिहास का सबसे पुराना और सबसे दूर स्थित ब्लैक होल खोज निकाला। यह ब्लैक होल CAPERS-LRD-z9 नामक आकाशगंगा में स्थित है और इसकी उत्पत्ति बिग बैंग के केवल 50 करोड़ साल बाद, यानी करीब 13.3 अरब साल पहले मानी जा रही है।
कितनी बड़ी है यह खोज?
इस ब्लैक होल का अनुमानित द्रव्यमान हमारे सूर्य से 38 मिलियन से 300 मिलियन गुना अधिक है। इस आकार और गति से इसके विकास ने खगोल विज्ञान में ब्लैक होल के विकास से जुड़ी अब तक की मान्यताओं को चुनौती दे दी है।
खोज के पीछे की प्रक्रिया
यह अध्ययन CAPERS प्रोजेक्ट के तहत किया गया, जो JWST के उस मिशन का हिस्सा है जो ब्रह्मांड के सबसे दूरस्थ कोनों की खोज में जुटा है। यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास, ऑस्टिन के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय टीम ने टेलीस्कोप के अत्याधुनिक इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपिक विश्लेषण का उपयोग किया।
इसी प्रक्रिया के दौरान वैज्ञानिकों ने Little Red Dots (LRDs) — दूरस्थ आकाशगंगाओं में दिखने वाले छोटे लाल बिंदुओं — का निरीक्षण किया और CAPERS-LRD-z9 में कुछ असामान्य देखा।
ब्लैक होल की पुष्टि कैसे हुई?
CAPERS-LRD-z9 से आने वाले प्रकाश की विशेषताओं को अध्ययन करते हुए वैज्ञानिकों ने देखा कि वहाँ की गैसें हज़ारों किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से घूम रही थीं। यह एक ऐक्रेशन डिस्क में पदार्थ के खिंचाव का स्पष्ट संकेत था — ठीक वही जो किसी सक्रिय ब्लैक होल की उपस्थिति को दर्शाता है। यही निर्णायक प्रमाण माना गया।
‘लिटिल रेड डॉट्स’ नाम क्यों?
इन प्राचीन आकाशगंगाओं की दूरबीन छवियों में उपस्थिति छोटे, चमकदार लाल बिंदुओं की तरह होती है। इसका कारण दो मुख्य तत्व हैं:
-
कॉस्मिक रेडशिफ्ट: जैसे-जैसे ब्रह्मांड फैलता है, प्रकाश की तरंगें लंबी और अधिक लाल हो जाती हैं।
-
गैस और धूल के बादल: ब्लैक होल घने गैसीय बादलों से घिरा होता है, जो नीली रोशनी को अवरुद्ध करते हैं, जिससे यह लाल दिखाई देता है।
कंप्यूटर मॉडल बताते हैं कि ऐसे गैसीय बादल JWST द्वारा देखे गए प्रकाश पैटर्न की व्याख्या कर सकते हैं।
वैज्ञानिक महत्व और आगे की दिशा
इस खोज ने शुरुआती ब्रह्मांड के बारे में कई नए सवाल खड़े कर दिए हैं:
-
क्या ब्लैक होल का विकास पहले से कहीं तेज़ हुआ?
-
क्या वे असामान्य रूप से विशाल बीज द्रव्यमानों से बने?
अब वैज्ञानिक JWST की मदद से अन्य ‘लिटिल रेड डॉट्स’ की गहन निगरानी करेंगे, ताकि और अधिक प्राचीन ब्लैक होल खोजे जा सकें। स्टीवन फिंकेलस्टीन, इस अध्ययन के सह-लेखक, कहते हैं, “ये लाल बिंदु JWST के शुरुआती डेटा से मिली सबसे बड़ी चौंकाने वाली खोजों में से एक थे। अब हम जानने की कोशिश कर रहे हैं कि ये हैं क्या और कैसे बने।”